केशरिया द्वारों में सराबोर न्यूयॉर्क का सेंट्रल पार्क
भारत से पहली बार अमेरिका आकर कोई इन दिनों सीधा सेंट्रल पार्क चला आया तो कुछ हतप्रभ रह जाएगा। हिंदुत्व का दम भरने वाली सभी संस्थाओं का परिचायक केशरिया रंग के हजारों ‘स्वागत-द्वार’ वह भी मैनहट्टन में?? कोई पार्टी, नेता, दल का नाम नहीं, किसी रैली या चुनाव चिह्न या किसी कंपनी के विज्ञापन का कोई नामोनिशान नहीं; फिर भी देखने वालों की उमड़ती भीड़। आखिर माजरा क्या है?
‘द गेट्स’ (द्वार) के नाम से यह अपनेआप में एक अनूठी प्रदर्शनी है, जिसमें मैनहट्टन के बीच सेंट्रल पार्क की परिक्रमा करते हुए 37 किलोमीटर की पगडंडियों के ऊपर कोई 7500 द्वार लगाए गए हैं। 16 फीट ऊंचे इन द्वारों की चौड़ाई 5.5 फीट से लेकर 18 फीट तक है। स्टील के खंभों के ऊपर सिर्फ केशरिया रंग का नायलोन कपड़ा, जो मुक्त हवा में लहराता है। दो दरवाजों के बीच 12 फीट का फासला, जिससे लहराता हुआ कपड़ा आपस में टकराए नहीं, बल्कि एक बहती हुई धारा का सा आभास दे। यह बनाने के लिए कोई पांच हजार टन स्टील और एक लाख वर्गमीटर नायलोन कपड़ा उपयोग में आया, और कोई 600-700 लोगों को न्यूयॉर्क में टेम्पररी रोजगार भी मिलेगा यह सब लगाने और उतारने में।
क्या है इस द गेट्स प्रदर्शनी के पीछे के भावना और उद्देश्य? और कौन है इसका प्रणेता? यह सृजन है दो सामान्य नागरिकों क्रिस्टो और उनकी पत्नी जीनी क्लाउड का। पेशे और शौक से यह दोनों का कलाकार हैं; और इस तरह पश्चिमी दुनिया के कई कोनों में प्रकृति को इस तरह ‘कपड़े’ से सजाने, ढंकने और एक नई आभास देने के प्रयास में तत्पर हैं। इसके लिए ना तो वह किसी सरकार, ना ही किसी कंपनी से कोई अनुदान लेते हैं, ना ही वह किसी संस्थान से जुड़े हैं। अपनी खुद ही की कलाकृतियां बेचकर एकत्रित जाम पूंजी को वह ऐसे अनूठे अभियान में लगाते हैं।
सेंट्रल पार्क में उनका यह प्रयास सिर्फ 16 दिन तक लोगों को लुभाता रहेगा। देखने वालों के लिए एक मुफ्त मुक्त अनुभव, जो इनके सारे प्रयासों की विशेषता है। सेंट्रल पार्क में इस वक्त पतझड़ के बाद पेड़-पत्तियों से विहीन हैं, इसलिए यह ‘केशरिया बहती नदी’ चारों तरफ नजर आ रही है। सेंट्रल पार्क के आसपास ऊंची इमारतों से यह दृश्य बहुत लुभावना है। क्या यह पैसे, कपड़े, स्टील का दुरुपयोग नहीं? क्या मिलता है इससे क्रिस्टो और जीनी और उस शहर को – हर किसी की इस विषय में अपनी राय हो सकती है और के विरोधी भी हैं। लेकिन कल रविवार को तेज धूप और कड़ी सर्दी के बीच मुझे तो हजारों हजार लोग नजर आए, जो इन गेट्स के नजारे का आनंद ले रहे थे, अपने कैमरे में इसकी यादों को कई डकार रहे थे।
इन दोनों कलाकारों को 26 वर्षों के प्रयास के बाद न्यूयॉर्क ने इस प्रदर्शनी की अनुमति दी है; इससे पहले उन्होंने अम्ब्रेला (छत्रियों) के नाम से जापान, रेप्ड माउंटेन (ढंके हुए पर्वत) के नाम से अमेरिका सहित 25 अलग देशों में विराट प्रदर्शनियां लगाई हैं, हर बार कपड़े की किसी रूप और गहरे रंग (पीला, गुलाबी, नीला आदि) इनके परिचय चिह्न हैं। इन कलाकारों के बारे में और जानकारी इनकी वेबसाइट पर है – www.christojeanneclaude.net
इस सप्ताह को इस प्रदर्शनी का आखरी सप्ताह है और इसी सप्ताह में अंतरराष्ट्रीय ओलिम्पिक समिति के प्रतिनिधि शहर के दौरे पर हैं, जिसमें 2012 के ओलिम्पिक्स के लिए न्यूयॉर्क की दावेदारी का आकलन किया जाएगा; फैसला होगा 5 जुलाई को। ‘द गेट्स’ भी मानो उन्हीं के स्वागत में लगे द्वार हैं।